सार
अब 18 अगस्त तक चारधाम यात्रा पर रोक रहेगी। मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी।
विस्तार
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चारधाम यात्रा पर लगी रोक को अगली तिथि अथवा सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आने तक के लिए बढ़ा दिया है। राज्य सरकार की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने, वहां से अभी कोई निर्णय न होने एवं राज्य सरकार की यात्रा पर रोक जारी रखने के लिए दी गई सहमति के आधार पर हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था दी।
प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और चारधाम यात्रा शुरू करने के मामले में दायर जनहित याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों, नर्सों और तकनीकी स्टाफ के कितने पद रिक्त हैं और इन्हें भरने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
कोर्ट ने यह भी पूछा कि जिला अस्पतालों में कितनी एम्बुलेंस हैं, कितनी चालू हालात में हैं और कितने की जरूरत है। अदालत ने टीकाकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से इसकी व्यक्तिगत रूप से निगरानी करने को कहा। कोर्ट ने टीकाकरण केंद्रों को अपर्याप्त बताया और पूछा कि दिव्यांग लोगों के टीकाकरण के लिए सरकार क्या कर रही है।
अदालत ने इंटर्न डॉक्टरों का मानदेय समय पर देने की व्यवस्था करने के लिए भी कहा। डेल्टा वैरिएंट के 300 सैंपल की जांच रिपोर्ट, कोरोना से मौतों की संख्या आदि बिंदुओं पर कोर्ट ने 18 अगस्त तक विस्तृत जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।
अधिवक्ता शिवभट्ट ने कहा कि सरकार ने चारधाम यात्रा को लेकर जो एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में पेश की है उसमें अभी तक सुनवाई नहीं हुई है, इसलिए चारधाम यात्रा पर रोक के आदेश को आगे बढ़ाया जाए। स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने कोर्ट को अवगत कराया कि प्रदेश में 95 ब्लॉक हैं। अभी उनके पास 108 सेवा की 54 एंबुलेंस हैं और हर ब्लॉक में एक एंबुलेंस उपलब्ध कराने के लिए 41 और एंबुलेंस की आवश्यकता है। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को आवेदन भेजा गया है।
कोर्ट ने सप्ताहांत में पर्यटन स्थलों में बढ़ रही भीड़ को लेकर चिंता जाहिर की। कोर्ट ने पूछा कि जिला अधिकारियों ने इसके लिए क्या प्लान बनाया है। कोर्ट में कहा गया कि नैनीताल में ही 75 प्रतिशत पर्यटक एसओपी का पालन नहीं कर रहे हैं। सामाजिक दूरी का भी पालन नहीं हो रहा है। इसी वजह से पिछले सप्ताह नैनीताल में 10 कोविड पॉजिटिव केस मिले।
एक पर्यटक ने महिला पुलिस के साथ मारपीट की, सरकार ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। अभी तक कितने ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली, सच्चिदानंद डबराल सहित अन्य ने हाईकोर्ट में कोविड के दौरान प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं, टीकाकरण आदि के संबंध में जनहित याचिकाएं दायर की हैं।
कोर्ट की ओर से राज्य सरकार से पूछे गए सवाल और दिए गए निर्देश
- सरकारी अस्पतालों में पीडियाट्रिक वार्ड और पीडियाट्रिक वेंटिलेटर की क्या स्थिति है।
- एक समय में कितने बच्चों को भर्ती करने की व्यवस्था है।
- राज्य में एंटी स्पिटिंग एंड एंटी लिटरिंग एक्ट 2016 के प्रावधान का सख्ती से पालन कराया जाए।
- वैक्सीनेशन सेंटरों की संख्या बढ़ाई जाए। लोगों के मन में टीके को लेकर संशय को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएं।
- घर के पास टीकाकरण केंद्र में पहुंचने में अक्षम दिव्यांगजनों के लिए घर पर ही टीका लगाने की व्यवस्था करें।
- अस्पतालों में निर्बल वर्ग के लिए 25 प्रतिशत बेड आरक्षण को खत्म करने के फैसले पर पुनर्विचार करे सरकार।
- राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध एंबुलेंस की स्थिति, सुविधाएं और उनकी क्षमता के संबंध में ऑडिट रिपोर्ट कोर्ट में दी जाए।
बच्चों के इलाज की आवश्यकता से दोगुनी व्यवस्था : नेगी
कोर्ट में सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने तीसरी लहर की संभावना के तहत की गई तैयारियों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक दूसरी लहर में किसी एक दिन आए अधिकतम मामलों के पांच फीसदी बच्चों को भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है। इसके अनुरूप प्रदेश में इससे दोगुने बच्चों को भर्ती करने की व्यवस्था है।
उन्होंने कहा कि इसे और बढ़ाया जा रहा है। नेगी ने कहा कि डीआरडीओ द्वारा बनाये गए अस्पताल अभी उपयोग के लिए सुरक्षित हैं, अन्य के निर्माण की भी बात चल रही है। चिकित्सकों व नर्सों की भर्ती के लिए संबंधित एजेंसी को निर्देशित किया जा चुका है। नेगी ने कहा कि उत्तराखंड देश में सर्वाधिक टीकाकरण दर वाले राज्यों में है। सरकारी अस्पतालों में केवल दो एमआरआई मशीनों के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार अतिरिक्त एमआरआई कभी भी लेने को तैयार है लेकिन इन्हें चलाने वाले नहीं मिल पा रहे हैं।