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देवभूमि उत्तराखंड

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रक्षाबंधन के त्योहार को मनाने की परंपरा की शुरुआत कहां से हुई ? जानिए रक्षाबंधन का भगवान कृष्ण और द्रौपदी से क्या है नाता? :

भविष्य पुराण के अनुसार, इसकी शुरुआत देव-दानव युद्ध से हुई थी। उस युद्ध में देवता हारने लगे। भगवान इंद्र घबरा कर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। उस अभिमंत्रित धागे की शक्ति से देवराज इंद्र ने असुरों को परास्त कर दिया। यह धागा भले ही पत्नी ने पति को बांधा था, लेकिन इससे धागे की शक्ति सिद्ध हुई और फिर कालांतर में बहनें भाई को राखी बांधने लगीं।

रक्षाबंधन का भगवान कृष्ण और द्रौपदी से क्या है नाता?
पौराणिक गाथाओं में राखी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी भगवान कृष्ण और द्रौपदी की है। शिशुपाल वध के समय श्रीकृष्ण इतने गुस्से में चक्र चलाया कि उनकी अंगुली घायल हो गई। उससे खून टपकने लगा। द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर भगवान की अंगुली पर बांध दिया। भगवान ने उसी समय पांचाली को वचन दिया कि वह हमेशा संकट के समय उनकी सहायता करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने दौपद्री चीरहरण के समय अपना वचन पूरा भी किया।

रक्षाबंधन का दानवराज बलि और लक्ष्मी से क्या है नाता?
रक्षाबंधन की कथा दानवराज बलि से भी जुड़ी है। राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग पर अधिकार जमाना चाहा। इससे देवराज इंद्र घबरा गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस दान के बदले राजा बलि ने भगवान से हमेशा अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। यह प्रसंग भी रक्षाबंधन मनाने की वजह बना।

रक्षाबंधन का हुमायूं और कर्णावती से क्या है नाता?
मध्यकालीन युग में यह त्योहार समाज के हर हिस्से में फैल गया। इसका श्रेय जाता है रानी कर्णावती को। उस वक्त चारों ओर एकदूसरे का राज्य हथियाने के लिए मारकाट चल रही थी। मेवाड़ पर महाराज की विधवा रानी कर्णावती राजगद्दी पर बैठी थीं। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह उनके राज्य पर नजरें गड़ाए बैठा था। तब रानी ने हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी। हुमायूं ने बहादुर शाह से रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की और राखी की लाज रखी।

इस त्योहार को देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तराखंड में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है।

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